प्रोटोकॉल
तो बहाना था राहुल गाँधी को तो छठी कतार में ही बिठाना था.
गणतंत्र दिवस समारोह में राहुल गाँधी को छठी कतार में जगह दिए जाने का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा. इस प्रकरण में आज कुछ नए बयान दिए गए हैं. कांग्रेस ने जहां इसे बीजेपी की ओछी मानसिकता बताया था वहीं आज बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए अंततः यह भेद खोल ही दिया कि प्रोटोकॉल तो बहाना था राहुल गाँधी को तो छठी कतार में ही बिठाना था. पत्रकारों
के सवाल का जवाब देते हुए आज बीजेपी के प्रवक्ता जी वी एल नरसिम्हा राव ने कहा कि बीजेपी ने राहुल गाँधी को छठी कतार में बिठा कर उनका सम्मान किया वरना वह तो वहां भी बैठने के लायक नहीं हैं. अब इसे अहंकार नहीं तो और क्या कहा जाएगा?
विपक्षी पार्टियों में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप और बयानों का सिलसिला तो चलता रहता है मगर उनका स्तर इतना घटिया नहीं होना चाहिए. अब इस बयान के बाद बीजेपी यह बहाना नहीं कर सकती कि केवल प्रोटोकॉल के कारण ही राहुल गाँधी के साथ ऐसा व्यवहार किया गया. आपको गुजरात चुनाव याद होगा, जब बयानों की जद में नेता लोग मोदी को भी लपेटने लगे थे तभी राहुल गाँधी का एक बयान आया था इसमें उन्होंने अपने दल के नेताओं को स्पष्ट शब्दों में कहा था कि मोदीजी पर हमला करते हुए उनके पद की गरिमा का ध्यान रखा जाए. परन्तु मोदीजी जैसे अहंकारी व्यक्ति से क्या ऐसी अपेक्षा की जा सकती है कि वह अपने नेताओं से ऐसी अपील करेंगे? ऐसा कभी हो नहीं सकता क्योंकि जो व्यक्ति स्वयं संसद में एक पूर्व प्रधानमंत्री को अनाप शनाप बक सकता है उसे दूसरों को नसीहत करने का अधिकार भी नहीं है. जिस तथाकथित आरोप को ले कर मोदीजी ने मनमोहन सिंह पर कटाक्ष किए थे सुप्रीम कोर्ट ने उस पूरे मामले को ही बेबुनियाद करार दे दिया
और सभी आरोपियों को बा इज्ज़त बरी कर दिया तब भी मोदीजी को अपने बयान वापस लेने की
नहीं सूझी.
आज अख़बारों में प्रतिष्ठित पत्रकार राजदीप सरदेसाई का भी एक लेख इसी संदर्भ में पढ़ने को मिला जिसमें उन्होंने लिखा है कि यदि मैं राहुल गाँधी की जगह होता तो आम जनता की टिकट ले कर जनता के बीच बैठता और इस अन्याय को अपने पक्ष में भुनाने का प्रयास करता. परन्तु राजदीप जी हर आदमी का स्तर एक जैसा नहीं होता. एक ने कभी चाय बेची या नहीं पता नहीं मगर अपने
चाय को रो रो कर मुद्दा बना दिया. मैं गरीब घर का हूँ बोल कर करोड़ों को गरीब बना कर देश का 73% धन 1% लोगों में बांट दिया. जनता अब उतनी मूर्ख रह नहीं गई है और चुनाव भी हर साल आते हैं इसलिए नेताओं को अब मुद्दे की राजनीति पर ध्यान केन्द्रित करना होगा.
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